एक चिड़िया थी| उसे उड़ने का बहुत मन था पर जब भी वह उड़ान भरने को होती तो उसका ध्यान भटक जाता| कभी कोई बातों में फंसा लेता तो कभी किसी से झगड़ा हो जाता| कभी किसी चोट के कारण नहीं उड़ पाती तो कभी खुद पर विश्वास नहीं रहता|

‘सब उड़ रहे हैं| मैं क्यों नहीं उड़ती?’ उसका मन इस सवाल से परेशान रहा करता था| जितना ही खुश रहना चाहे मन चिड़चिड़ाया हुआ ही रहता|

‘मुझे उड़ना है| मैं उड़ने के लिए बनी हूँ| मैं उड़ क्यों नहीं पा रही?’ ऐसा सोचते सोचते उसे लगने लगा की शायद वह जिस पेड़ पर बैठी है उसी की गलती है| यह पेड़ थोड़ा छोटा है इसलिए लगता है कि मुझे ऊंचाई नहीं मिल पा रही| इसके पत्ते भी देखों कैसे बदरंग से हो चले हैं| अब ऐसी जगह में किसी के मन में कैसे उत्साह रह सकता है? आत्मविश्वास आएं तो कैसे आए?

पेड़ उसे समझाता रहता| बोलता कि ‘मैं तेरे लिए हमेशा खड़ा हूँ – तू बस एक बार हिम्मत कर के उड़ तो सही| अगर गिर भी गई तो मैं तो हूँ न|’

पर चिड़िया का मन पेड़ से उखड़ चुका था| उसकी किसी बात पर उसे भरोसा न था| कई पुरानी बातें याद आ जाती|  मन में ख्याल आता कि शायद यही नही चाहता कि मैं उड़ूँ| नहीं तो अब तक मैं उड़ न जाती|

बहुत दिनों तक ऐसा ही चलता रहा| जब भी लगता कि अब चिड़िया उड़ जाएगी, किसी न किसी कारण से उसके पंख और पैर दोनों रुक जाते|

वह चिड़िया अब उड़ने की आस खो चुकी थी| ‘अब इतनी उम्र हो चुकी है अब क्या उड़ूँगी मैं|’

एक दिन एक पक्षी वहां आकर बैठा| चिड़िया वहां उदास सी बैठी थी|  उसने पूछा कि उदास क्यों हो? चिड़िया ने अपने मन की बात बताई| उसे सुनकर पक्षी हंसा| उसने कहा तुम्हे पता है तुम कौन हो?

चिड़िया उसकी  तरफ थोड़े अनमने, थोड़े चिड़चिड़े भाव से देख रही थी| उसे लग रहा था कि वह पक्षी उसका मजाक उड़ा रहा है|

पक्षी बोला – ‘तुम चील हो| तुम सबसे ऊंची उड़ान भरने वाली पक्षियों में  से एक हो| तुम जब चाहे उड़ सकती हो; बहुत ऊंचा उड़ सकती हो| यह पेड़  तो तुम्हारा घर है; तुम्हे इस पेड़ ने नहीं रोका| तुम्हें कोई रोक ही नहीं सकता| तुम्हें तो सिर्फ तुम्हारे मन ने रोका है| एक बार छलांग लगाकर तो देखो| तुम्हे अपनी काबिलियत का खुद ही अंदाजा हो जाएगा|

उस पक्षी की वजह से चील में थोड़ी हिम्मत आई| वह उड़ने को हुई तो पैर थम गए| पंख खुल नहीं पाए| तभी पक्षी ने कहा – ‘डरो मत, उड़ो’| पेड़ ने भी कहा – ‘डरो मत, उड़ो’| पत्तियां भी कहने लगीं – ‘डरो मत, उड़ो’| आस पास बैठे अन्य पक्षियों और जानवरो ने भी कहना शुरू किया – ‘डरो मत, उड़ो’|

चील का हौसला एक बार और बढ़ा और उसने छलांग लगा दी| सहसा उसे लगा कि वह गिर रही है; अब मौत दूर नहीं है| उसने आँखें बंद कर ली पर तभी उसके पंख फड़फड़ाये और वह अचानक उड़ने लगी| उसने ऊंचाई से देखा तो दुनिया अलग लगी| देखा कि नीचे से सभी ख़ुशी से उसकी और देखकर चिल्ला रहे थे| मन उल्ल्सित हो गया| वह फिर से जी उठी|

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